प्रथम अरवी महिला लिखती है उर्दू में शायरी

*प्रथम अरबी महिला जो उर्दू में शाएरी लिखती हैं डाॅक्टर वला जमाल अल असीली* *सलीक़े से हवाओं में जो खुशबू घोल सकते हैं अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं* समुद्र के पार उर्दू साहित्य जगत की एक प्रमुख कवयित्री हैं डाॅक्टर वला जमाल अल असीली उर्दू जगत की सबसे प्रसिद्ध कवयित्रियों मे से एक हैं वो समुद्र के उस पार मिस्र में रहती हैं। उर्दू से बहोत प्रेम करती हैं। उर्दू ज़बान से उन्हें इश्क है। मिस्र की एक मशहूर शख्सियत होने के साथ साथ , वो भारत में भी लोकप्रिय हो रही है। वला जमाल अपने काव्य पाठ के माध्यम से श्रोताओं में नवीन ऊर्जा का संचालन करने में सक्षम कवयित्री डाॅक्टर वला जमाल अल असीली मूल रूप से मिस्र की रहने वाली है। प्रेम और अनुराग के काव्य की रचनाकार  डाॅक्टर वला जमाल अल असीली मिस्र की प्रतिष्ठित कवयित्रियों में गिनी जाती हैं। उनकी रचनाओं में प्रेम, श्रंगार ,करुण ,शांत ,विरह, और हास्य सभी का मिश्रण होता है। उनकी पुस्तक "समुंद्र है दरमियां" उनकी उर्दू कविताओं का पहला संग्रह पुस्तक के रूप सामने आ चुका है। इसमें विभिन्न विषयों पर 50 कविताएँ हैं। डॉ वला जमाल अल-असीली की इस पुस्तक पर लाहौर की डॉ सैय्यद बशीर, बर्लिन की इशरत मोईन सीमा ,और दिल्ली के डॉ मोहम्मद काज़िम ने अपने विचार व्यक्त किए। वैसे तो वो मिस्र से हैं लेकिन उर्दू उनकी मूल भाषा नहीं है। अरबी कविता में शुरुआत करने के बाद उन्हें उर्दू शायरी में भी महारत हासिल की। उर्दू में एम,ए और पी,एच,डी करने के बाद, वह मिस्र के काहिरा एन शम्स विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग में व्याख्याता हैं। शिक्षण सेवाएं प्रदान कर रही है कविता किसी भी इंसान के लिए अपनी भावनाओं और अनुभवों को प्रतिबिंबित करने का नाम है। हर इंसान का जीवन जीने का और जीवन को समझने का अपना एक अलग तरीका होता है। हर इंसान के अपने विचार होते हैं। उन उतार-चढ़ाव को वह अपने दृष्टिकोण से समझता है। हर चीज़ को समझने के कई तरीके होते हैं। कई ढंग होते हैं। लेकिन जब बड़ी-बड़ी बातों को बड़े विचारों को कम शब्दों में बदल दिया जाता है, तो वो शाएरी या कविता कहलाती है कोई भी इंसान हमेशा किसी न किसी चीज़ यानी प्रकृति की बनाई हुई चीज़ या उसकी कृतियों या विचार में खोया रहता है प्रत्येक व्यक्ति अपने दृष्टिकोण से सोचता है। लेकिन संवेदनशील लोगों का अवलोकन बहुत ही गहरा होता है। शाएरी, कविता का संबध भी संवेदनशील लोगों के साथ अधिक है। उन हीं में से एक हैं डॉ वला जमाल अल-असीली जो बहुत संवेदनशील कवयित्री है, उनके विचार उनकी सोच में गहरे निहित हैं। एक महिला माँ, पत्नी, बहन, बेटी, हर रूप में और हर रिश्ते में, इज्ज़त सम्मान, प्रतिष्ठा और वफादारी का एक प्रतीक है महिलाओं को हमेशा पुरुषों से हीन माना जाता है। "मुझे एक औरत होने पर नाज़ है" मुझे एक औरत होने पर नाज़ है मुझे इज्ज़त के साथ दुनिया में रहना है। इज्जत के काबिल हूं मैं । बस क्योंकि इंसान हूं मैं । औरत जो इंसान ही है । दुख से भरी है। जुल्म के बादल छट गए मुद्दत से जगह जगह मायूसी का एहसास नुमाया है। चेहरा दस्ती जारी वसारी है आज़ादी जिंदगी खुदा की एक बक्शीश है न अब न पहले आजाद रही मैं सितारों की तरह दमकने का ख्वाब देखती हूं मैं । झंडे की तरह लहलहाने का ख्वाब देखती हूं मैं। मुझे हूरियत का आफताब ए रोशन देखना है। एक महिला हमेशा समाज में सम्मान चाहती है और खुलकर जीना चाहती है। अपनी भावनाओं को जज़्बात को व्यक्त करना चाहती है। अपने अधिकारों की रक्षा करना चाहती है। लेकिन वर्षों से, समाज उसके अधिकारों का हनन और उल्लंघन कर रहा है। एक महिला में अनेक योग्यताएं होती हैं। लेकिन हर व्यक्ति इन योग्यताओं नही समझ पाता। हर किसी के पास इन क्षमताओं को समझने की क्षमता नहीं होती है। डॉ। वला जमाल की शाएरी महिलाओं पर आधारित है जब वो कविता लिखती हैं। तो वह लिखती ही चली जाती हैं । और कहीं कविता में वह खुश दिखती हैं । और कहीं कविता में वह उदास दिखती है। और कहीं वह अपने अधिकारों और सुरक्षा की मांग करती दिखाई देती हैं अपने जज़्बात पर काबू पाना मेरे लिए आसान नहीं। अपने दिल पर काबू पाना मेरे बस में नहीं। मुश्किल लगता है लोगों को बताना किस तजुर्बे से गुजर रही हूं। इन सभी विषयों पर उन्होंने अपनी कविताएँ लिखती हैं मैं वो औरत हूं अंधेरे में भटकती हूं। कोई रोशनी नहीं दिखती । तारीकी में लड़खड़ाती हूं। अपनी मंजिल नहीं जानती। मेरे साथ नाइंसाफी होती है । मुझसे मेरा सुकून छीन लेती है। किस्मत बदला लेने से रूकती है । अब तो नूर से नफरत होने लगी है। मेरी जिंदगी अज़ाब हो गई है । जब हम उनसे मुलाकात हुई। मेरी नजरें तेरी कश्ती के सुराख़ पर पड़ी। ताहम तेरी कश्ती में सवार हुई । तेरे साथ समंदर में चप्पू चलाई । तेरे साथ तेरे साथ मैंने सफर किया। वला जमाल ने बहुत ही कम शब्दों में अपनी भावनाओं का बहुत हो गहराई से वर्णन किया है। यहाँ उनकी कुछ उन कुछ पंक्तियाँ आपको समर्पित कर रहे हैं अपने जज्बात पर काबू पाना मेरे लिए आसान नहीं। अपने दिल पर काबू पाना मेरे बस में नहीं। मुश्किल लगता है लोगों को बताना किस तजुर्बे से गुजर रही हूं। लोग वास्तव में शाएरी या कविता को केवल शब्दों का रूप में मानते हैं। लेकिन शाएरी वो जुनून है वो जज़्बा है। जिसमें एक व्यक्ति अपने दिल की स्थिति और उसकी भावनाओं का संक्षेप में इस तरह से वर्णन करता है कि लोग इससे प्रभावित हो जाते हैं। वला जमाल अपनी दिल की स्थिति और अपनी भावनाओं को कविता में एक अद्भुत तरीके से बदल देती हैं । उनकी कविता की यह विशेषता है। मुझे उनको पढ़ कर बहोत अच्छा लगा वो गैर-मौखिक होने पर भी वे उर्दू में इतनी अच्छी कविताएँ लिखती हैं। और इस तरह सरलता से वह, गहनतम शब्द कह जाती हैं। वला जमाल उन महिलाओं के लिए एक उदाहरण है एक मिस जो खुद को केवल घर तक सीमित रखती हैं। और उन्हें लगता है कि वह कुछ नहीं कर सकती। प्रत्येक महिला के भीतर, सर्वशक्तिमान अल्लाह ने वही ज्ञान दिया है जो एक आदमी को दिया गया है। जो हर इंसान में दिया गया है। लेकिन समाज की बाधाओं के कारण, एक महिला अपनी बुद्धि को शीर्ष पर ले जाने में असमर्थ है। उर्दू एक मीठी ज़बान है बहोत ही प्यारी खूबसूरत भाषा है। उर्दू एक भारतीय आर्य भाषा है, जो भारतीय संघ की 22 राष्ट्रीय भाषाओं में से एक व पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है। हालाँकि यह फ़ारसी और अरबी से प्रभावित है, लेकिन यह हिन्दी के निकट है और इसकी उत्पत्ति और विकास भारतीय उपमहाद्वीप में ही हुआ। दोनों भाषाएँ एक ही भारतीय आधार से उत्पन्न हुई हैं। उर्दू भाषा का व्याकरण पूर्णतः हिंदी भाषा के व्याकरण पर आधारित है तथा यह अनेक भारतीय भाषाओं से मेल खाता है। उर्दू नस्तालीक़ लिपि में लिखी जाती है, जो फ़ारसी-अरबी लिपि का एक रूप है। उर्दू दाएँ से बाएँ लिखी जाती है। यह हमारी ज़िम्मेदारी है अपनी भाषा को बढ़ावा दें ताकि आने वाली पीढ़ियों को पता चलेगा उर्दू क्या है? और हमारे लिए क्यूँ आवश्यक है और हमारे पुरखों ने उर्दू के लिए कितने योगदान दिए। और उर्दू भाषा के लिए उनकी सेवाएं क्या हैं? आज की पीढ़ी। उर्दू भाषा से दूर होती जा रही है, हमें उन्हें उर्दू जैसी मीठी भाषा से अवगत कराना होगा हमें अपनी मातृभाषा को भी महत्व देना चाहिए। क्योंकि शिक्षा का महत्व और मातृभाषा के माध्यम से उचित प्रशिक्षण संभव है। उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है वो शख़्श मोहज़्ज़ब है जिस को ये ज़बां आई हमें डॉ वला जमाल अल-असीली पर हमें बहुत गर्व और नाज़ है। आपको अधिक विस्तार से पढ़कर मुझे अच्छा लगा। उर्दू का प्रचार-प्रसार उर्दू के फरोग़ उर्दू की बक़ा के लिए डॉ वला जमाल अल-असीली की खिदमत सराहनीय हैं अल्लाह हमेशा आपको कामयाबी कामरानी सर बुलन्दी से सरफाराज़ फरमाए आमीन *आरिफ सैफी देहलवी* *श्री वेंकटेश्वर महाविद्यालय* *दिल्ली विश्वविद्यालय* aarifsaifidehlvi@gmail.com